एक जीवित रहस्य और रोमांच!!!
यह पोस्ट किसी क्रांतिकारी के अपमान करने के उद्देश्य से नही लिखी गई हैं।यह मात्र आपकी जानकारी और मनोरंजन हेतु लिखी गई है।
सौभाग्य से एक क्रांतिकारी था जिसे आज कोई देशद्रोही कहे तो आप मारने को दौड़ोगे।
दुर्भाग्य से एक समय ऐसा था कि अगर उसके क्रांतिकारी साथियों को भी कहते कि वो देश भगत है तो वो तुरन्त आप को मारने को दौड़ते।भगतसिंह तक ने अपने इस साथी के जिंदा रहने के स्थान पर जहर खाकर आत्महत्या कर लेने को अच्छा माना था।
सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य से एक ऐसा क्रांतिकारी जिसको लेकर विद्वानों में कभी भारी मतभेद रहे थे।देश भक्त या देश द्रोही?,दोस्त या दुश्मन?शातिर दिमाग या महामूर्ख, हिमालय से अडोल या बिन पेंदे का लोट?उसकी कोई सुनता नही था, या फिर सुनाने को तैयार नहीं था???
कौन था वो,चलिए भारत के इतिहास के सबसे अनोखे और अनूठे क्रांतिकारी के बारे में जानते हैं और प्रयास करते हैं सुलझाने की यह पहेली।
सौभाग्य से इस क्रांतिकारी का जन्म 15 मई1907 पंजाब की धरती पर लुधियाना में हुया।इनकी माता का श्रीमती रल्ली देवी थापर और पिता का नाम रामलाल थापर था।
दुर्भाग्य से छोटी सी आयु में उसके पिता की मृत्यु हो गई।
सौभाग्य से उसे उसके चाचा मथरदास थापर ने पाला, जो उस समय आर्य समाज के नेता भी थे।वो इन्हें लायलपुर ले आये और यही इनकी शिक्षा हुई।
दुर्भाग्य से हमें उनके आरम्भिक जीवन के बारे मे ज्यादा जानकारी नहीं मिलती।
सौभाग्य से उन्होंने 20 वर्ष की आयु में कम्युनिस्ट सिद्धान्तों पर प्रशन उतर की शैली में किताब लिखी।
दुर्भाग्य से आज वो किताब उपलब्ध नहीं है।
सौभाग्य से उन्हें लाहौर में भगत सिंह यशपाल और भगवती चरण वोहरा जी जैसे क्रांतिकारी युवकों का साथ मिला।
दुर्भाग्य से देश के क्रांतिकारियों को एक झंडे के नीचे लाने का प्रयास सफल नहीं हुआ।
सौभाग्य से1924 में लाला लाजपतराय जी ने वीर सावरकर जी की “1857 क्रांति”पुस्तक कांग्रेस के मंच से छपवाई।
दुर्भाग्य से यह सनशिप्त रूप में थी और इसमें काफी कांट छांट की गई थी।
सौभाग्य से भगतसिंह को इसकी एक मूल और सम्पूर्ण प्रति मिल गई,जिसे उन्होंने छपवाने का निर्णय लिया।
दुर्भाग्य से पुस्तक बहुत महंगी छपी,उस पर आंदोलन के लिए धन जुटाने हेतु भी इसका मूल्य अधिक रखा गया था।
सौभाग्य से इस पुस्तक की अधिकतर प्रतियां बिक गई और दुर्गा भाभी के अनुसार इस क्रांतिकारी ने सबसे ज्यादा प्रतियां बेची थी।
दुर्भाग्य से धन की कमी के चलते क्रांतिकारियों ने लाहौर की पंजाब नेशनल बैंक को लूटने की योजना बनाई।
सौभग्य से इस क्रांतिकारी को इस योजना के तहत गार्ड से बन्दूक छीननी थी।
दुर्भाग्य से भगत सिंह अंतिम समय पर भागने के लिए टेक्सी कार का इंतजाम न कर सके जिसके चलते अंतिम समय में यह योजना टालनी पड़ी।
सौभाग्य से सांडर्स वध की योजना बनाने का उत्तरदायित्व इसी क्रांतिकारी को सौंपा गया।
दुर्भाग्य से बैकग्राउंड तैयारियों के चलते यह क्रांतिकारी साथी सांडर्स वध स्थल पर मौजूद नहीं था।
सौभाग्य से सांडर्स वध ऑपेरशन सफल रहा।
दुर्भाग्य से भगतसिंह और राजगुरू को पहचानने वाले सरकारी गवाह मिल गये।
सौभाग्य से भगतसिंह, राजगुरू और चन्द्रशेखर को लाहौर से बाहर निकाल लिया गया।
दुर्भाग्य से इस क्रांतिकारी को कभी इसका श्रेय नही दिया गया।
सौभाग्य से भगतसिंह ने संसद भवन में बम्ब धमाका करने और गिरफ्तारी की योजना बनाई।
दुर्भाग्य से कोई भी साथी भगत सिंह की गिरफ्तारी की पक्ष में नही था।
सौभाग्य से इस क्रांतिकारी ने लाहौर से आगरा पहुंच कर भगतसिंह को संसद में जाने को उत्साहित किया।
दुर्भाग्य से क्रांतिकारी के इस कदम ने उसके साथियों के मन में उसके प्रति नराजगी पैदा कर दी जो आगे चल कर घृणा और दुवेष में बदल गई।
सौभाग्य से भगतसिंह की पार्ल्यामेंट में धमाका और गिरफ्तारी ने उस क्रांतिकारी की सोच को सही ठहराया।
दुर्भाग्य से अप्रैल1929 में लाहौर से वो गिरफ्तार हो गया।वो गिरफ्तार होने वाला भगत सिंह के बाद पहला क्रांतिकारी था।जिसके बाद सब पकड़े चले गए।अंत सभी का संदेह इसी क्रांतिकारी पर चला जाता है कि इसी ने पुलिस को सभी के बारे में जानकारी दी।
सौभाग्य से इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता।सहारनपुर में क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी कालू राम हलवाई की गवाही पर हुई थी,न की इसके।
दुर्भाग्य से यह आरोप लगा कि यह सरकारी गवाह बन गया था।
सौभाग्य से इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता।
दुर्भाग्य से लेकिन इसके हस्तलिखित सांडर्स केस का सारा विवरण पुलिस ने कोर्ट में प्रस्तुत किया था, जोकि उनके अनुसार इसने अपने भतीजे को सौंपा था।
सौभाग्य से इस क्रांतिकारी ने महात्मा गांधी को एक पत्र लिखा जोकि गांधी जी ने हरिजन में छपवाया था और इसका उत्तर भी दिया था।
परन्तु दुर्भाग्य से इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इसके लिखे सभी कागज पत्र नष्ट कर दिये और हमे जेल में लिखा अन्य कोई पत्र नही मिलता।
सौभाग्य से जेल में फैली अव्यवस्था के विरुद्ध क्रांतिकारी साथियों सहित भगतसिंह ने भूखहड़ताल का निर्णय लिया, जिसमें यह क्रांतिकारी भी शामिल हो गया।
परन्तु दुर्भाग्य से 15 दिन बाद इस क्रांतिकारी ने भूखहड़ताल से हटने का निर्णय लेकर अपने सभी साथियों को नाराज कर दिया।
सौभाग्य से जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस जेल में क्रांतिकारियों से मिलने आये।
दुर्भाग्य से उन्होंने कभी भी इस क्रांतिकारी से नही मिलना जरूरी नहीं समझा।
सौभाग्य से ब्रिटिश सरकार ने जेल में क्रांतिकारियों को इकट्ठा होने की इजाजत दे दी।सभी क्रांतिकारी सायंकाल इकट्ठे हो कर हंसी मजाक करते थे।
दुर्भाग्य से उन्हें इस क्रांतिकारी का अपने मध्य होना पसन्द नही था और अक्सर इनकी उपस्थिति झगड़े और हाथा पाई तक पहुंच जाती थी।अतः इस क्रांतिकारी ने सबसे अलग रहना आरम्भ कर दिया।
सौभाग्य से भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों कोर्ट कार्यवाही का अंग न बनने का निर्णय लिया।इस क्रांतिकारी ने भी इस निर्णय का न चाहते हुए भी सन्मान करते हुए कोर्ट जाना छोड़ दिया।
दुर्भाग्य से उसने इसके बाद भी अपने साथियों को उस पर उंगली उठाने का अवसर प्रदान कर दिया।इस क्रांतिकारी ने कोर्ट कार्यवाही की रिपोर्ट मंगवानी और उन्हें जाँचना शुरू कर दिया।भगतसिंह के हर साथी के पास उसके खिलाफ शिकायत मौजूद थी।
सौभाग्य से महीनों बाद उसे अपने साथी भगतसिंह का स्नेह से बड़ा पत्र मिला।
दुर्भाग्य से उस पत्र मेंभगतसिंह ने Yलिखा,”यदि तुम जिंदा गिरफ्तार होने के स्थान पर जहर खाकर आत्महत्या कर लेता तो मुझे अधिक प्रसन्ता होती।”
सौभाग्य से क्रांतिकारी दल में उसका गुप्त नाम एंजेल था।
दुर्भाग्य से मगर अब वो अपने साथियों में शैतान माना जाता था।
सौभाग्य से28 सितम्बर 1929 का दिन आ गया।इस दिन कोर्ट ने लाहोर कॉन्सपिरेसी केस पर अपना निर्णय सुना दिया।भगतसिंह और राजगुरू की फांसी की सजा सुनाई गई, जिसका सबको पहले से ज्ञान था, परन्तु इस क्रांतिकारी की सजा ने उन्हें चोंका दिया।किसी को भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।उसकी देशभक्ति बेदाग सिद्ध हो चुकी थी।
सौभाग्य से उसका नाम सुखदेव था।
दुर्भाग्य से हम में से बहुत कम लोग सुखदेव और उनके कार्यों के बारे में जानते हैं।